एक दो ज़ख़्म नहीं जिस्म है सारा छलनी
दर्द बे-चारा परेशाँ है कहाँ से निकले
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1906) Peoples Rate This
बात वो बात नहीं है जो ज़बाँ तक पहुँचे
पहले था मोहब्बत का गुमाँ सो वो यक़ीं है
फ़र्द को अस्र की रफ़्तार लिए फिरती है
हक़ किसी का अदा नहीं होता
इश्वा क्यूँ दिल-रुबा नहीं होता
हम से वो बे-रुख़ी से मिलता है
आई नहीं क्या क़ैद है गुलशन में सबा भी
आह-ओ-फ़रियाद का असर देखा
आँख जो इश्वा-ए-पुर-कार लिए फिरती है
अक़्ल की जान पर बन आई है
मुस्कुराने से मुद्दआ' क्या है