नज्द से जानिब-ए-लैला जो हवा आती है
दिल-ए-मजनूँ के धड़कने की सदा आती है
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हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी
जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें
मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है
जलूँगा मैं कि दिल उस बुत का ग़ैर पर आया
कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं
बहुत मुज़िर दिल-ए-आशिक़ को आह होती है
उन्स है ख़ाना-ए-सय्याद से गुलशन कैसा
याद-ए-अय्याम कि हम-रुतबा-ए-रिज़वाँ हम थे
चला घर से वो बहर-ए-हुस्न अल्लाह रे कशिश दिल की
न डरे बर्क़ से दिल की है कड़ी मेरी आँख
मौज-ए-दरिया से बला की चाहिए कश्ती मुझे
वहशत-ए-दिल ये बढ़ी छोड़ दिए घर सब ने