तेरी यादों की कहानी तो नहीं है 'तनवीर'
दिल पे दस्तक जो दिया करता है ख़ुशबू की तरह
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लम्हा-दर-लम्हा गुज़रता ही चला जाता है
अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं
अजीब शख़्स है पत्थर से पर बनाता है
दिल के भूले हुए अफ़्साने बहुत याद आए
मिल भी जाता जो आब आब-ए-बक़ा क्या करते
क्या ज़रूरी है कोई बे-सबब आज़ार भी हो
ये बात दश्त-ए-वफ़ा की नहीं चमन की है
फ़िशार-ए-हुस्न से आग़ोश-ए-तंग महके है
पलक झपकने में कुछ ख़्वाब टूट जाते हैं
ज़ेहन ज़िंदा है मगर अपने सवालात के साथ
बज़्म-ए-जाँ फिर निगह-ए-तौबा-शिकन माँगे है