Ghazals of Wahshat Raza Ali Kalkatvi

Ghazals of Wahshat Raza Ali Kalkatvi
नामवहशत रज़ा अली कलकत्वी
अंग्रेज़ी नामWahshat Raza Ali Kalkatvi
जन्म की तारीख1881
मौत की तिथि1956
जन्म स्थानKolkata

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया

'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए

वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया

तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा

तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं

सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता

शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे

शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया

शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़

शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने

संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ

पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे

पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम

नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है

नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले

नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे

मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का

लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं

लूटा है मुझे उस की हर अदा ने

लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट

लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है

क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर

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