Coupletss of Wahshat Raza Ali Kalkatvi

Coupletss of Wahshat Raza Ali Kalkatvi
नामवहशत रज़ा अली कलकत्वी
अंग्रेज़ी नामWahshat Raza Ali Kalkatvi
जन्म की तारीख1881
मौत की तिथि1956
जन्म स्थानKolkata

ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत

ज़ालिम की तो आदत है सताता ही रहेगा

ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'

यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया

वो काम मेरा नहीं जिस का नेक हो अंजाम

'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर

'वहशत' सुख़न ओ लुत्फ़-ए-सुख़न और ही शय है

उठा लेने से तो दिल के रहा मैं

उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे

तुम्हारा मुद्दआ ही जब समझ में कुछ नहीं आया

तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

था क़फ़स का ख़याल दामन-गीर

तेरा मरना इश्क़ का आग़ाज़ था

सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है

सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम

रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम

निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले

नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले

न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं

मिरे तो दिल में वही शौक़ है जो पहले था

मेरा मक़्सद कि वो ख़ुश हों मिरी ख़ामोशी से

मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है

मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफ़्साना

मजाल-ए-तर्क-ए-मोहब्बत न एक बार हुई

कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज-ए-दरिया का हरीफ़

किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'

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