ज़माना और अभी ठोकरें लगाए हमें
अभी कुछ और सँवर जाना चाहते हैं हम
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इस तरह रोज़ हम इक ख़त उसे लिख देते हैं
आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है
जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह
वो सूरतें जो बड़ी शोख़ हैं सजीली हैं
हमें अंजाम भी मालूम है लेकिन न जाने क्यूँ
हमें तेरे सिवा इस दुनिया में किसी और से क्या लेना-देना
ग़म के रिश्तों को कभी तोड़ न देना 'वाली'
फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे
भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है
फिर वही रेग-ए-बयाबाँ का है मंज़र और हम
दिन भर ग़मों की धूप में चलना पड़ा मुझे