Ghazals of Zafar Iqbal (page 4)
नाम | ज़फ़र इक़बाल |
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अंग्रेज़ी नाम | Zafar Iqbal |
जन्म की तारीख | 1933 |
जन्म स्थान | Okara, Pakistan |
हवा-ए-वादी-ए-दुश्वार से नहीं रुकता
हवा बदल गई उस बेवफ़ा के होने से
हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत
हमारे सर से वो तूफ़ाँ कहीं गुज़र गए हैं
है कोई इख़्तियार दुनिया पर
है और बात बहुत मेरी बात से आगे
हद हो चक्की है शर्म-ए-शकेबाई ख़त्म हो
गिरने की तरह का न सँभलने की तरह का
एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए
एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है
दिन पर सोच सुलगती है या कभी रात के बारे में
दिल को रहीन-ए-बंद-ए-क़बा मत किया करो
दिल का ये दश्त अरसा-ए-महशर लगा मुझे
देखो तो कुछ ज़ियाँ नहीं खोने के बावजूद
दरिया-ए-तुंद-मौज को सहरा बताइए
दरिया दूर नहीं और प्यासा रह सकता हूँ
छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया
चमके गा अभी मेरे ख़यालात से आगे
चमकती वुसअतों में जो गुल-ए-सहरा खिला है
चलो इतनी तो आसानी रहेगी
बीनाई से बाहर कभी अंदर मुझे देखे
बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए
बिजली गिरी है कल किसी उजड़े मकान पर
भूल बैठा था मगर याद भी ख़ुद मैं ने किया
बेवफ़ाई करके निकलूँ या वफ़ा कर जाऊँगा
ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं
बदला ये लिया हसरत-ए-इज़हार से हम ने
बात ऐसी भी कोई नहीं कि मोहब्बत बहुत ज़ियादा है