इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी
चमक रहा है ख़ेमा-ए-रौशन दूर सितारे सा
मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया
ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे
लहर लहर क्या जगमग जगमग होती है
एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती
मौज-ए-रेग सराब-सहरा कैसे बनती है
'ज़ेब' अब ज़द में जो आ जाए वो दिल हो कि निगाह
मैं ने बेताबाना बढ़ कर दश्त में आवाज़ दी
मुझ से बिछड़ कर होगा समुंदर भी बेचैन
खुली थी आँख समुंदर की मौज-ए-ख़्वाब था वो
बहार कौन सी तुझ में जमाल-ए-यार न थी