हम को अमरीका तो बिल्कुल रास आया ही नहीं
अपनी नाकामी पे आओ मिल के सब थू-थू करें
माल-ओ-दौलत अब भी मिल सकते हैं हम सब को मगर
लाटरी निकले हमारी या किसी पर सू करें
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
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भारी पैर
शायर-ए-आज़म
मैं जिसे हीर समझता था वो राँझा निकला
वो भरी बज़्म में कहती है मुझे अंकल-जी
माशूक़ जो ठिगना है तो आशिक़ भी है नाटा
कूचा-ए-यार में मैं ने जो जबीं-साई की
मुझे अपनी बीवी पे फ़ख़्र है मुझे अपने साले पे नाज़ है
मिरे रोब में तो वो आ गया मिरे सामने तो वो झुक गया
सर-ए-बज़्म मुझ को उठा दिया मुझे मार मार लिटा दिया
बंगला और बीवी
दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे
सफ़र हो रेल-गाड़ी का तो छके छूट जाते हैं