Love Poetry of Abbas Tabish (page 2)

Love Poetry of Abbas Tabish (page 2)
नामअब्बास ताबिश
अंग्रेज़ी नामAbbas Tabish
जन्म की तारीख1961
जन्म स्थानLahore

तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप

तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं

सुब्ह की पहली किरन पहली नज़र से पहले

शिकस्ता-ख़्वाब-ओ-शिकस्ता-पा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना

शे'र लिखने का फ़ाएदा क्या है

शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर

शाख़ पर फूल फ़लक पर कोई तारा भी नहीं

शजर समझ के मिरा एहतिराम करते हैं

साँस के शोर को झंकार न समझा जाए

सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है

रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया

रातें गुज़ारने को तिरी रहगुज़र के साथ

पस-ए-ग़ुबार मदद माँगते हैं पानी से

पाँव पड़ता हुआ रस्ता नहीं देखा जाता

पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है

नींदों का एक आलम-ए-असबाब और है

निगाह-ए-अव्वलीं का है तक़ाज़ा देखते रहना

नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है

न तुझ से है न गिला आसमान से होगा

मुसाफ़िरत में शब-ए-वग़ा तक पहुँच गए हैं

मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था

मेरे आ'साब मोअ'त्तल नहीं होने देंगे

मकाँ-भर हम को वीरानी बहुत है

मैं अपने इश्क़ को ख़ुश-एहतिमाम करता हुआ

मह-रुख़ जो घरों से कभी बाहर निकल आए

कुंज-ए-ग़ज़ल न क़ैस का वीराना चाहिए

कोई टकरा के सुबुक-सर भी तो हो सकता है

कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए

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