प्यास बुझ जाए ज़मीं सब्ज़ हो मंज़र धुल जाए
काम क्या क्या न इन आँखों की तिरी आए हमें
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
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Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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शिकस्त-ए-व'अदा की महफ़िल अजीब थी तेरी
चकमा
नानी-अमाँ की वफ़ात पर एक नज़्म
हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई
बहुत मलूल बड़े शादमाँ गए हुए हैं
दिखाई देने के और दिखाई न देने के दरमियान सा कुछ
तब-ए-हस्सास मिरी ख़ार हुई जाती है
बंद फ़सीलें शहर की तोड़ें ज़ात की गिरहें खोलें
अलविदा
शोलों से बे-कार डराते हो हम को
जैसे कोई दायरा तकमील पर है
आवाज़ के मोती