यादों के नक़्श घुल गए तेज़ाब-ए-वक़्त में
चेहरों के नाम दिल की ख़लाओं में खो गए
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सवाल बे-अमान बन के रह गए
अलविदा
हसरत-ए-दीद नहीं ज़ौक़-ए-तमाशा भी नहीं
जिन को ख़ुद जा के छोड़ आए क़ब्रों में हम
सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया
बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे
पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात
बयाज़ पर सँभल सके न तजरबे
मिरी रफ़ीक़-ए-नफ़्स मौत तेरी उम्र दराज़
पस-मंज़र में 'फ़ीड' हुए जाते हैं इंसानी किरदार
रात है लोग घर में बैठे हैं
घर वाले मुझे घर पर देख के ख़ुश हैं और वो क्या जानें