कभी तो दैर-ओ-हरम से तू आएगा वापस
मैं मय-कदे में तिरा इंतिज़ार कर लूँगा
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ज़बाँ पर आप का नाम आ रहा था
हर दिल-फ़रेब चीज़ नज़र का ग़ुबार है
आता है कौन दर्द के मारों के शहर में
सितारों के आगे जो आबादियाँ हैं
खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई
तख़लीक़-ए-काएनात के दिलचस्प जुर्म पर
आँख का ए'तिबार क्या करते
न ख़ुदा है न नाख़ुदा साथी
आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता
'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
हँस के बोला करो बुलाया करो
लोग कहते हैं कि तुम से ही मोहब्बत है मुझे