अनार-ए-ख़ुल्द को तू रख कि मैं पसंद नहीं
कुचें वो यार की रश्क-ए-अनार ऐ वाइ'ज़
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ख़ाक आब-ए-गिर्या से आतिश बुझे नाचार हम
नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा
उल्फ़त में तेरा रोना 'एहसाँ' बहुत बजा है
तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया
गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए
तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम
आह-ए-पेचाँ अपनी ऐसी है कि जिस के पेच को
शब पिए वो सराब निकला है
हर आन जल्वा नई आन से है आने का
तो भी उस तक है रसाई मुझे एहसाँ दुश्वार
जाँ-कनी पेशा हो जिस का वो लहक है तेरा
मज़े की बात तो ये है कि बे-मज़ा है वो दिल