मैं ज़ेहनी तौर से आज़ाद होने लगता हूँ
मिरे शुऊर मुझे अपनी हद के अंदर खींच
Anwar Masood
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ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
अक्स-बर-अक्स
मौज-दर-मौज हवाओं से बचा लाऊँगा
जिगर को ख़ून किए दिल को बे-क़रार अभी
दवाम
यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले
ख़याल
हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है
फैले हुए ग़ुबार का फिर मो'जिज़ा भी देख
बड़ा ख़ुशनुमा ये मक़ाम है नई ज़िंदगी की तलाश कर
गुज़रे लम्हात का एहसास हुआ जाता है
जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच