तिरी गली में जो धूनी रमाए बैठे हैं
हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़
मूजिद जो नूर का है वो मेरा चराग़ है
दुनिया जो न मैं चंद नफ़स के लिए लेता
इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए
तेरे आलम का यार क्या कहना
क्या बुझाएगा मिरे दिल की लगी वो शोला-रू
दो वक़्त निकलने लगी लैला की सवारी
दुखा देते हो तुम दिल को तो बढ़ जाता है दिल मेरा
रहा करते हैं यूँ उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में
किस के हाथों बिक गया किस के ख़रीदारों में हूँ
तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए