दुनिया जो न मैं चंद नफ़स के लिए लेता
जन्नत का इलाक़ा मिरी जागीर में आता
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आमद आमद है तिरे शहर में किस वहशी की
इलाही ख़ैर जो शर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं
तीर-ए-नज़र से छिद के दिल-अफ़गार ही रहा
तिरी गली में जो धूनी रमाए बैठे हैं
पुर-नूर जिस के हुस्न से मदफ़न था कौन था
जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ
इश्क़ हो जाएगा मेरी दास्तान-ए-इश्क़ से
रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं
तू नहीं मिलती तो हम भी तुझ को मिलने के नहीं
रहा करते हैं यूँ उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में
हमेशा शेफ़्ता रखती है अपने हुस्न-ए-क़ुदरत का
रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है