Islamic Poetry of Ahmad Husain Mail

Islamic Poetry of Ahmad Husain Mail
नामअहमद हुसैन माइल
अंग्रेज़ी नामAhmad Husain Mail

वाइ'ज़ का ए'तिराज़ ये बुत हैं ख़ुदा नहीं

मुसलमाँ काफ़िरों में हूँ मुसलामानों में काफ़िर हूँ

मैं ही मोमिन मैं ही काफ़िर मैं ही काबा मैं ही दैर

खोल कर ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को पढ़ी उस ने नमाज़

जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ

है हुक्म-ए-आम इश्क़ अलैहिस-सलाम का

ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे

वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं

निकली जो रूह हो गए अजज़ा-ए-तन ख़राब

महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़

क्यूँ शौक़ बढ़ गया रमज़ाँ में सिंगार का

क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब

कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़

जुम्बिश में ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या

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