Sad Poetry of Ahmad Husain Mail

Sad Poetry of Ahmad Husain Mail
नामअहमद हुसैन माइल
अंग्रेज़ी नामAhmad Husain Mail

नींद से उठ कर वो कहना याद है

नाज़ कर नाज़ तिरे नाज़ पे है नाज़ मुझे

जलसों में ख़ल्वतों में ख़यालों में ख़्वाब में

हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा

ग़ैर का हाल तो कहता हूँ नुजूमी बन कर

दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का

आसमाँ खाए तो ज़मीन देखे

वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ

वो बुत परी है निकालें न बाल-ओ-पर ता'वीज़

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट

रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़

मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस

महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़

क्यूँ शौक़ बढ़ गया रमज़ाँ में सिंगार का

क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब

कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़

जुम्बिश में ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या

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