लोग कहते हैं कि साया तिरे पैकर का नहीं
मैं तो कहता हूँ ज़माने पे है साया तेरा
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मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है
दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता
ईद का दिन है फ़ज़ा में गूँजते हैं क़हक़हे
ख़मोश झील पे क्यूँ डोलने लगा बजरा
बलाग़त का अलमिया
गिरती हुई बूँदें हैं कि पारे की लकीरें
तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ
गो मिरे दिल के ज़ख़्म ज़ाती हैं
तिमतिमाते हैं सुलगते हुए रुख़्सार तिरे
फिर भयानक तीरगी में आ गए
मैं ने इस दश्त की वुसअत में शबिस्ताँ पाए
इक सफ़ीना है तिरी याद अगर