Sad Poetry of Aitbar Sajid

Sad Poetry of Aitbar Sajid
नामऐतबार साजिद
अंग्रेज़ी नामAitbar Sajid
जन्म की तारीख1948
जन्म स्थानIslamabad

तअल्लुक़ किर्चियों की शक्ल में बिखरा तो है फिर भी

रिहा कर दे क़फ़स की क़ैद से घायल परिंदे को

पहले ग़म-ए-फ़ुर्क़त के ये तेवर तो नहीं थे

मुख़्तलिफ़ अपनी कहानी है ज़माने भर से

मकीनों के तअल्लुक़ ही से याद आती है हर बस्ती

मैं तकिए पर सितारे बो रहा हूँ

किसी को साल-ए-नौ की क्या मुबारकबाद दी जाए

जुदाइयों की ख़लिश उस ने भी न ज़ाहिर की

भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें

फ़त्ह का ग़म

ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं

ये बरसों का तअल्लुक़ तोड़ देना चाहते हैं हम

वो पहली जैसी वहशतें वो हाल ही नहीं रहा

तिलिस्म-ज़ार-ए-शब-ए-माह में गुज़र जाए

तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था

तर्क-ए-तअल्लुक़ कर तो चुके हैं इक इम्कान अभी बाक़ी है

शहर-ए-हवा में जलते रहना अंदेशों की चौखट पर

रस्ते का इंतिख़ाब ज़रूरी सा हो गया

फूलों में वो ख़ुशबू वो सबाहत नहीं आई

फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे

न गुमान मौत का है न ख़याल ज़िंदगी का

मुझ से मुख़्लिस था न वाक़िफ़ मिरे जज़्बात से था

मुझे वो कुंज-ए-तन्हाई से आख़िर कब निकालेगा

मुझे ऐसा लुत्फ़ अता किया कि जो हिज्र था न विसाल था

मिरी रूह में जो उतर सकें वो मोहब्बतें मुझे चाहिएँ

मिरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है

मैं तकिए पर सितारे बो हा हूँ

किसी ने दिल के ताक़ पर जला के रख दिया हमें

किसी को हम से हैं चंद शिकवे किसी को बेहद शिकायतें हैं

कैसे कहीं कि जान से प्यारा नहीं रहा

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