अकबर इलाहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अकबर इलाहाबादी (page 6)
नाम | अकबर इलाहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akbar Allahabadi |
जन्म की तारीख | 1846 |
मौत की तिथि | 1921 |
जन्म स्थान | Allahabad |
मेरे हवास-ए-इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर
मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़
मअ'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है
लुत्फ़ चाहो इक बुत-ए-नौ-ख़ेज़ को राज़ी करो
क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक
क्या ही रह रह के तबीअ'त मिरी घबराती है
ख़ुशी क्या हो जो मेरी बात वो बुत मान जाता है
ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है
जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा
जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है
जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का
जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ
जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया
इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हवा-ए-शब भी है अम्बर-अफ़्शाँ उरूज भी है मह-ए-मुबीं का
हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए
हर इक ये कहता है अब कार-ए-दीं तो कुछ भी नहीं
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के
हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए