अकबर इलाहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अकबर इलाहाबादी (page 2)
नाम | अकबर इलाहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akbar Allahabadi |
जन्म की तारीख | 1846 |
मौत की तिथि | 1921 |
जन्म स्थान | Allahabad |
शैख़ की दावत में मय का काम क्या
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें
सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा पर
समझ में साफ़ आ जाए फ़साहत इस को कहते हैं
सब हो चुके हैं उस बुत-ए-काफ़िर-अदा के साथ
रक़ीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
रह-ओ-रस्म-ए-मोहब्बत इन हसीनों से मैं क्या रक्खूँ
रहमान के फ़रिश्ते गो हैं बहुत मुक़द्दस
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
पूछा 'अकबर' है आदमी कैसा
पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर'
नाज़ क्या इस पे जो बदला है ज़माने ने तुम्हें
नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है
मुझ को तो देख लेने से मतलब है नासेहा
मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ
मेरी ये बेचैनियाँ और उन का कहना नाज़ से
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
मिरा मोहताज होना तो मिरी हालत से ज़ाहिर है
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
मरऊब हो गए हैं विलायत से शैख़-जी
मैं हूँ क्या चीज़ जो उस तर्ज़ पे जाऊँ 'अकबर'
मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
मय भी होटल में पियो चंदा भी दो मस्जिद में
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को
लिपट भी जा न रुक 'अकबर' ग़ज़ब की ब्यूटी है
लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं