अकबर इलाहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अकबर इलाहाबादी (page 4)
नाम | अकबर इलाहाबादी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Akbar Allahabadi |
जन्म की तारीख | 1846 |
मौत की तिथि | 1921 |
जन्म स्थान | Allahabad |
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर चंद बगूला मुज़्तर है इक जोश तो उस के अंदर है
हक़ीक़ी और मजाज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया
ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
दुख़्तर-ए-रज़ ने उठा रक्खी है आफ़त सर पर
डिनर से तुम को फ़ुर्सत कम यहाँ फ़ाक़े से कम ख़ाली
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह का
दावा बहुत बड़ा है रियाज़ी में आप को
डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है
कॉलेज से आ रही है सदा पास पास की
कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया
बुतों के पहले बंदे थे मिसों के अब हुए ख़ादिम
बुत-कदे में शोर है 'अकबर' मुसलमाँ हो गया
बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें
बूट दासन ने बनाया मैं ने इक मज़मून लिखा
बोले कि तुझ को दीन की इस्लाह फ़र्ज़ है
बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगा
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
बी.ए भी पास हों मिले बी-बी भी दिल-पसंद
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
अगर मज़हब ख़लल-अंदाज़ है मुल्की मक़ासिद में
अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा