अकबर इलाहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अकबर इलाहाबादी (page 3)
नाम | अकबर इलाहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akbar Allahabadi |
जन्म की तारीख | 1846 |
मौत की तिथि | 1921 |
जन्म स्थान | Allahabad |
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है
क्या वो ख़्वाहिश कि जिसे दिल भी समझता हो हक़ीर
क्या पूछते हो 'अकबर'-ए-शोरीदा-सर का हाल
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी
कुछ नहीं कार-ए-फ़लक हादसा-पाशी के सिवा
कुछ इलाहाबाद में सामाँ नहीं बहबूद के
किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब-ए-वस्ल
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ 'अकबर'
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
ख़िलाफ़-ए-शरअ कभी शैख़ थूकता भी नहीं
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
जिस तरफ़ उठ गई हैं आहें हैं
जवानी की है आमद शर्म से झुक सकती हैं आँखें
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बोतलें इकट्ठी
जान शायद फ़रिश्ते छोड़ भी दें
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
इस गुलिस्ताँ में बहुत कलियाँ मुझे तड़पा गईं
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
हुए इस क़दर मोहज़्ज़ब कभी घर का मुँह न देखा
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना