मेरे सुकून-ए-क़ल्ब को ले कर चले गए
और इज़्तिराब-ए-दर्द-ए-जिगर दे गए मुझे
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दिल को शाइस्ता-ए-एहसास-ए-तमन्ना न करें
मोहब्बत क्या मोहब्बत का सिला क्या
दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
तू अगर दिल-नवाज़ हो जाए
मुझे तो कल भी न था उन पर इख़्तियार कोई
वो क्या गए पयाम-ए-सफ़र दे गए मुझे
वो तअल्लुक़ है तिरे ग़म से कि अल्लाह अल्लाह
मेरी बेताबियों से घबरा कर
हमें दुनिया में अपने ग़म से मतलब
किसी के वादा-ए-फ़र्दा पर ए'तिबार तो है
मुझे आँखें दिखाएगी भला क्या गर्दिश-ए-दौराँ