हिज्र की रात ये हर डूबते तारे ने कहा
हम न कहते थे न आएँगे वो आए तो नहीं
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जुनूँ से राह-ए-ख़िरद में भी काम लेना था
ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
आँखों में लिए जल्वा-ए-नैरंग-ए-तमाशा
ज़ुल्मत-कदों में कल जो शुआ-ए-सहर गई
मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी
तेरे हल्के से तबस्सुम का इशारा भी तो हो
गो वसीअ' सहरा में इक हक़ीर ज़र्रा हूँ
हम अहल-ए-दिल ने मेयार-ए-मोहब्बत भी बदल डाले
दबी आवाज़ में करती थी कल शिकवे ज़मीं मुझ से
मस्ती-ए-गाम भी थी ग़फ़लत-ए-अंजाम के साथ
ग़ज़ब हुआ कि इन आँखों में अश्क भर आए