सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले
तू ने रोका भी था बंदे को ख़ता से पहले
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1522) Peoples Rate This
जब दिल में ज़रा भी आस न हो इज़्हार-ए-तमन्ना कौन करे
दिल-ए-बेताब का अंदाज़-ए-बयाँ है वर्ना
गले लगा के किया नज़्र-ए-शो'ला-ए-आतिश
'मुल्ला' बना दिया है इसे भी महाज़-ए-जंग
अब और इस से सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला'
तू ने फेरी लाख नर्मी से नज़र
मिरी बातों पे दुनिया की हँसी कम होती जाती है
मुझे कर के चुप कोई कहता है हँस कर
आईना-ए-रंगीन जिगर कुछ भी नहीं क्या
अब बन के फ़लक-ज़ाद दिखाते हैं हमें आँख
कहने को लफ़्ज़ दो हैं उम्मीद और हसरत
बशर को मशअ'ल-ए-ईमाँ से आगही न मिली