हम ने हर सम्त बिछा रक्खी हैं आँखें अपनी
जाने किस सम्त से आ जाए सवारी तेरी
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Gulzar
Jaun Eliya
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दुख के ताक़ पे शाम ढले
जागती आँख से जो ख़्वाब था देखा 'अनवर'
दुश्मन तो मेरे तन से लहू चूसता रहा
जो फूल झड़ गए थे जो आँसू बिखर गए
साँसों में मिल गई तिरी साँसों की बास थी
खुली ज़बान तो ज़र्फ़ उन का हो गया ज़ाहिर
उस के बग़ैर ज़िंदगी कितनी फ़ुज़ूल है
मौसम सर्द हवाओं का
सियाहियों का नगर रौशनी से अट जाए
दीवार पर लिखा न पढ़ो और ख़ुश रहो
उस की अना के बुत को बड़ा कर के देखते
चश्मे की तरह फूटा और आप ही बह निकला