उसी की बात लिखी चाहे कम लिखी हम ने
उसी का ज़िक्र किया चाहे ख़ाल-ख़ाल किया
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शायरी मुझ को अजब हाल में ले जाती है
तुम्हारे हिज्र में मरना था कौन सा मुश्किल
ख़ून कितना बहा था मक़्तल में
अभी तो मैं ने फ़क़त बारिशों को झेला है
ज़ख़्म सब उस को दिखा कर रक़्स कर
इक बरस हो गया उसे देखे
तलाश-ए-रिज़्क़ का ये मरहला अजब है कि हम
सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैं
नफ़स की आमद-ओ-शुद को वबाल कर के भी
अजब था नश्शा-ए-वारफ़तगी-ए-वस्ल उसे
उस गली से मिरे गुज़रने तक