दो ख़त ब-नाम-ए-ज़ौजा-ओ-जानाँ लिखे मगर
दोनों ख़तों का उस से लिफ़ाफ़ा बदल गया
Jaun Eliya
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न ये क़ानून काम आया था राँझे के ज़रा सा भी
मैं एक बोरी में लाया हूँ भर के मूँग-फली
थका हारा निकल कर घर से अपने
ये दिया मैसेज ट्वीटर पर फ़सादी शख़्स ने
ऐसी ख़्वाहिश को समझता हूँ मैं बिल्कुल नेचुरल
कूदे हैं उस के सेहन में दो-चार शेर-दिल
ऐसे बंदों को जानता हूँ मैं
इश्क़ में ये तफ़रक़ा-बाज़ी बहुत मायूब है
बेगम से कह रहा था ये कोई ख़ला-नवर्द
मोअर्रिख़ लिख न दें सुक़रात मुझ को
कितनी मज़ाहिया है ये बोतल के जिन की बात