बताओ ऐसे मरीज़ों का है इलाज कोई
कि जिन से हाल भी अपना बयाँ नहीं होता
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आप जिस दिल से गुरेज़ाँ थे उसी दिल से मिले
दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ
तह में दरिया-ए-मोहब्बत के थी क्या चीज़ 'अज़ीज़'
दिल का छाला फूटा होता
फूट निकला ज़हर सारे जिस्म में
मुसीबत थी हमारे ही लिए क्यूँ
मेरे रोने पे ये हँसी कैसी
बे-ख़ुदी कूचा-ए-जानाँ में लिए जाती है
बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना
दिल की आलूदगी-ए-ज़ख़्म बढ़ी जाती है
भड़क उट्ठेंगे शो'ले एक दिन दुनिया की महफ़िल में
चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया