तुम ने छेड़ा तो कुछ खुले हम भी
बात पर बात याद आती है
Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(852) Peoples Rate This
ये तेरी आरज़ू में बढ़ी वुसअत-ए-नज़र
सामने आइना था मस्ती थी
मुसीबत थी हमारे ही लिए क्यूँ
इश्क़ जो मेराज का इक ज़ीना है
दिल नहीं जब तो ख़ाक है दुनिया
साफ़ बातिन देर से हैं मुंतज़िर
चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया
परतव-ए-हुस्न कहीं अंजुमन-अफ़रोज़ तो हो
तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
क़त्ल और मुझ से सख़्त-जाँ का क़त्ल
हमेशा तिनके ही चुनते गुज़र गई अपनी