अहल-ए-ज़र ने देख कर कम-ज़रफ़ी-ए-अहल-ए-क़लम
हिर्स-ए-ज़र के हर तराज़ू में सुख़न-वर रख दिए
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
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दर्द-ए-हिजरत के सताए हुए लोगों को कहीं
कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
मिरे हर लफ़्ज़ की तौक़ीर रहने के लिए है
क़ातिल हुआ ख़मोश तो तलवार बोल उठी
वही पत्थर लगा है मेरे सर पर
पड़े हैं राह में जो लोग बे-सबब कब से
हमारे ख़्वाब चोरी हो गए हैं
तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे
उसी के ज़ुल्म से मैं हालत-ए-पनाह में था
हुसूल-ए-मंज़िल-ए-जाँ का हुनर नहीं आया
कोई शय दिल को बहलाती नहीं है