ना-उमीदी है बुरी चीज़ मगर
एक तस्कीन सी हो जाती है
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दोहराई जा सकेगी न अब दास्तान-ए-इश्क़
कब से उलझ रहे हैं दम-ए-वापसीं से हम
ठोकर किसी पत्थर से अगर खाई है मैं ने
सुकूँ नसीब हुआ हो कभी जो तेरे बग़ैर
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
किसी के सितम इस क़दर याद आए
अब इश्क़ रहा न वो जुनूँ है
ना-उम्मीदी है बुरी चीज़ मगर
तुम जब आते हो तो जाने के लिए आते हो
कौन समझे इश्क़ की दुश्वारियाँ
मेरे दिल को भी पड़ा रहने दो