तुम ख़ुद ही दास्तान बदलते हो दफ़अतन
हम वर्ना देखते नहीं किरदार से परे
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(768) Peoples Rate This
चाँद तारे तो मिरे बस में नहीं हैं 'आज़र'
मंज़र से उधर ख़्वाब की पस्पाई से आगे
सभी के हाथ में पत्थर थे 'आज़र'
मख़्फ़ी हैं अभी दिरहम-ओ-दीनार हमारे
बदन को छोड़ ही जाना है रूह ने 'आज़र'
ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं
ज़मीन अपने ही मेहवर से हट रही होगी
ख़ुद में खिलते हुए मंज़र से नुमूदार हुआ
वो बहते दरिया की बे-करानी से डर रहा था
हवस से जिस्म को दो-चार करने वाली हवा
दूर के एक नज़ारे से निकल कर आई
आँख में ख़्वाब ज़माने से अलग रक्खा है