न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
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शाएर लोग
नज़्र-ए-मौलाना हसरत-मुहानी
फ़िक्र-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तो छूटेगी
ये मौसम-ए-गुल गरचे तरब-ख़ेज़ बहुत है
इस वक़्त तो यूँ लगता है
मरसिए
ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
एक तराना मुजाहिदीन-ए-फ़िलिस्तीन के लिए
निसार मैं तेरी गलियों के
सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी
ऐ दिल-ए-बेताब ठहर
लेनिन-ग्राड का गोरिस्तान