मक़्तल में न मस्जिद न ख़राबात में कोई
हम किस की अमानत हैं ग़म-ए-कार-ए-जहाँ दें
शायद कोई इन में से कफ़न फाड़ के निकले
अब जाएँ शहीदों के मज़ारों पे अज़ाँ दें
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
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सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं
हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
'सज्जाद-ज़हीर' के नाम
रह-ए-ख़िज़ाँ में तलाश-ए-बहार करते रहे
शाम
दीदा-ए-तर पे वहाँ कौन नज़र करता है
दीवार-ए-शब और अक्स-ए-रुख़-ए-यार सामने
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है
ब'अद-अज़-वक़्त
हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी