Love Poetry of Farhan Salim

Love Poetry of Farhan Salim
नामफ़रहान सालिम
अंग्रेज़ी नामFarhan Salim

यूँ भी किया है हम ने हक़-ए-दिलबरी अदा

उन्हें गुमाँ कि मुझे उन से रब्त है 'सालिम'

हैं इन में बंद किसी अहद-ए-रस्त-ख़ेज़ के अक्स

है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवार

अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से

आम है इज़्न कि जो चाहो हवा पर लिख दो

ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे

वो क़ाफ़िला जो रह-ए-शाएरी में कम उतरा

उदास शाम में पज़मुर्दा बाद बन के न आ

तू मिरी इब्तिदा तू मिरी इंतिहा मैं समुंदर हूँ तू साहिलों की हवा

शुहूद-ए-दिल-ज़दगाँ मंज़रों में रख आना

शिकस्त-ए-आसमाँ हो जाऊँगा मैं

शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ

मिरे चराग़ो मिरा गंज-ए-बे-कराँ ले लो

मता-ए-दर्द मआल-ए-हयात है शायद

मक्र-ए-हयात रुख़ की क़बा भी उतार दी

मैं तिरे संग कैसे चलूँ हम-सफ़र तू समुंदर है मैं साहिलों की हवा

क्या बताएँ क्या कल शब आख़िरी पहर देखा

खो बैठी है सारे ख़द-ओ-ख़ाल अपनी ये दुनिया

अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से

आम है इज़्न कि जो चाहो हवा पर लिख दो

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