किस काम का ऐसा दिल जिस में रंजिश है ग़ुबार है कीना है
हम को है ज़रूरत उस दिल की सब जिस को कहें आईना है
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ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है
काबा भी घर अपना है सनम-ख़ाना भी अपना
दिल मिरा शाकी-ए-जफ़ा न हुआ
तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया
जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं
महफ़िल-ए-कौन-ओ-मकाँ तेरी ही बज़्म-ए-नाज़ है
दीवाने को मजाज़-ओ-हक़ीक़त से क्या ग़रज़
तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
हस्ती इक नक़्श-ए-इनइकासी है
चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं
हसरत-ए-दिल ना-मुकम्मल है किताब-ए-ज़िंदगी
छुप गया दिन क़दम बढ़ा राही