Ghazals of Ghulam Maula Qalaq
नाम | ग़ुलाम मौला क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Maula Qalaq |
ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही
वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है
उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं
उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़
उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़
थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो
तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं
तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा
न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना
क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है
क्या आ के जहाँ में कर गए हम
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल
ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा
ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट
कहिए क्या और फ़ैसले की बात
जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले
जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ
हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं
हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़
हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़