Love Poetry of Ghulam Maula Qalaq
नाम | ग़ुलाम मौला क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Maula Qalaq |
ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरीं
वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे
तुझ से ऐ ज़िंदगी घबरा ही चले थे हम तो
तेरा दीवाना तो वहशत की भी हद से निकला
मोहब्बत वो है जिस में कुछ किसी से हो नहीं सकता
कौन जाने था उस का नाम-ओ-नुमूद
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो
बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न काबे की मोहब्बत
बोसा देने की चीज़ है आख़िर
अंदाज़ा आदमी का कहाँ गर न हो शराब
ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही
वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है
उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं
उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़
तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़
थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो
तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना
क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है
क्या आ के जहाँ में कर गए हम
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल
ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा
ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट
जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले
हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं