Friendship Poetry of Ghulam Maula Qalaq
नाम | ग़ुलाम मौला क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Maula Qalaq |
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता
ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही
उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं
उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़
उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा
मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना
क्या आ के जहाँ में कर गए हम
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल
ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ
हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़
है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला
दोस्ती उस की दुश्मनी ही सही
दिल के हर जुज़्व में जुदाई है
चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'
ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम
आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम
आए क्या तेरा तसव्वुर ध्यान में