Heart Broken Poetry of Ghulam Maula Qalaq
नाम | ग़ुलाम मौला क़लक़ |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Maula Qalaq |
ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरीं
उस से न मिलिए जिस से मिले दिल तमाम उम्र
तेरा दीवाना तो वहशत की भी हद से निकला
किधर क़फ़स था कहाँ हम थे किस तरफ़ ये क़ैद
ख़ुदा से डरते तो ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न करते हम
कौन जाने था उस का नाम-ओ-नुमूद
जबीन-ए-पारसा को देख कर ईमाँ लरज़ता है
हम उस कूचे में उठने के लिए बैठे हैं मुद्दत से
फ़िक्र-ए-सितम में आप भी पाबंद हो गए
दिल के हर जुज़्व में जुदाई है
दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता
अश्क के गिरते ही आँखों में अंधेरा छा गया
ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही
वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है
उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं
उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़
उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़
थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो
तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा
न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक
मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना
क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है
क्या आ के जहाँ में कर गए हम
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है