उतरेंगे किस के हल्क़ से ये दिल-ख़राश घूँट
किस को पयाम दूँ कि मिरे साथ आ के पी
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इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया
मुद्दतों तक जो पढ़ाया किया उस्ताद मुझे
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
ऐ दोस्त मिट गया हूँ फ़ना हो गया हूँ मैं
ज़िक्र उस्ताद-ए-फ़न का जाने दे
ऐ 'हफ़ीज़' आह आह पर आख़िर
दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे
देखा जो खा के तीर कमीं-गाह की तरफ़
मिरा तजरबा है कि इस ज़िंदगी में
हाए कोई दवा करो हाए कोई दुआ करो
ख़ून बन कर मुनासिब नहीं दिल बहे
आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने