हैदर अली आतिश कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हैदर अली आतिश (page 5)
नाम | हैदर अली आतिश |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Haidar Ali Aatish |
जन्म की तारीख | 1778 |
मौत की तिथि | 1847 |
जन्म स्थान | Lucknow |
क़द-ए-सनम सा अगर आफ़रीदा होना था
पिसे दिल उस की चितवन पर हज़ारों
पीरी से मिरा नौ दिगर-हाल हुआ है
पयम्बर मैं नहीं आशिक़ हूँ जानी
नाज़-ओ-अदा है तुझ से दिल-आराम के लिए
ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए
मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था
मोहब्बत का तिरी बंदा हर इक को ऐ सनम पाया
मिरे दिल को शौक़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मिरे लब तक आती दुआ नहीं
मौत माँगूँ तो रहे आरज़ू-ए-ख़्वाब मुझे
मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद
मगर उस को फ़रेब-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना आता है
लिबास-ए-यार को मैं पारा-पारा क्या करता
लख़्त-ए-जिगर को क्यूँकर मिज़्गान-ए-तर सँभाले
क्या क्या न रंग तेरे तलबगार ला चुके
कूचा-ए-दिलबर में मैं बुलबुल चमन में मस्त है
कोई इश्क़ में मुझ से अफ़्ज़ूँ न निकला
कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से
ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे
ख़ार मतलूब जो होवे तो गुलिस्ताँ माँगूँ
कौन से दिल में मोहब्बत नहीं जानी तेरी
काबा ओ दैर में है किस के लिए दिल जाता
काम हिम्मत से जवाँ मर्द अगर लेता है
जोश-ओ-ख़रोश पर है बहार-ए-चमन हनूज़
जौहर नहीं हमारे हैं सय्याद पर खुले
जब के रुस्वा हुए इंकार है सच बात में क्या
जाँ-बख़्श लब के इश्क़ में ईज़ा उठाइए
इस शश-जिहत में ख़ूब तिरी जुस्तुजू करें
इस के कूचे में मसीहा हर सहर जाता रहा
इंसाफ़ की तराज़ू में तौला अयाँ हुआ