पूछता फिरता हूँ गलियों में कोई है कोई है
ये वो गलियाँ हैं जहाँ लोग थे सरशारी थी
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कच्ची क़ब्रों पर सजी ख़ुशबू की बिखरी लाश पर
वो निगह जब मुझे पुकारती थी
हम ऐसे लोग जो आइंदा ओ गुज़िश्ता हैं
उम्र की अव्वलीं अज़ानों में
दिखाई देने लगी थी ख़ुशबू
आँख बीनाई गँवा बैठी तो
सुन क़तार अंदर क़तार अश्जार की सरगोशियाँ
दिल के सूने सहन में गूँजी आहट किस के पाँव की
गली का मंज़र बदल रहा था
दिल के सूने सेहन में गूँजी आहट किस के पाँव की
बस एक लम्हा तिरे वस्ल का मयस्सर हो
जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी