तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजाल
देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया
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आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न
उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर
जो और कुछ हो तिरी दीद के सिवा मंज़ूर
दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई
कोशिशें हम ने कीं हज़ार मगर
कृष्ण
आप ने क़द्र कुछ न की दिल की
और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों
न सूरत कहीं शादमानी की देखी
तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए