Friendship Poetry (page 9)
सो दुनिया में जीना बसना दिल को मरने मत देना
इदरीस बाबर
रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है
इदरीस बाबर
मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
मैं कुछ दिनों में उसे छोड़ जाने वाला था
इदरीस बाबर
किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है
इदरीस बाबर
ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ
इदरीस बाबर
इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं
इदरीस बाबर
इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ
इदरीस बाबर
इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ
इदरीस बाबर
गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर
इदरीस बाबर
दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त
इदरीस बाबर
देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे
इदरीस बाबर
हवादिसात ज़रूरी हैं ज़िंदगी के लिए
इबरत मछलीशहरी
अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया
इबरत मछलीशहरी
सुकूँ-परवर है जज़्बाती नहीं है
इबरत बहराईची
चाहे सहरा में चाहे घर रहना
इबरत बहराईची
ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है
इब्राहीम अश्क
तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे
इब्राहीम अश्क
शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या
इब्राहीम अश्क
न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा
इब्राहीम अश्क
मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो
इब्राहीम अश्क
करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे
इब्राहीम अश्क
देखा तो कोई और था सोचा तो कोई और
इब्राहीम अश्क
मिरी नज़र में है अंजाम इस तआक़ुब का
इब्राहीम होश
यूँही वाबस्तगी नहीं होती
इब्न-ए-सफ़ी
क्या क्या हैं गिले उस को बता क्यूँ नहीं देता
इब्न-ए-रज़ा
शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं
इब्न-ए-मुफ़्ती
नफ़रतें न अदावतें बाक़ी हैं
इब्न-ए-मुफ़्ती
कर बुरा तो भला नहीं होता
इब्न-ए-मुफ़्ती
दिल वही अश्क-बार रहता है
इब्न-ए-मुफ़्ती