Hope Poetry (page 115)
दिल कुश्ता-ए-नज़र है महरूम-ए-गुफ़्तुगू हूँ
अज़ीज़ लखनवी
दिल का छाला फूटा होता
अज़ीज़ लखनवी
देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना
अज़ीज़ लखनवी
चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया
अज़ीज़ लखनवी
भड़क उट्ठेंगे शो'ले एक दिन दुनिया की महफ़िल में
अज़ीज़ लखनवी
बताऊँ क्या कि मिरे दिल में क्या है
अज़ीज़ लखनवी
वहशत-ए-दिल का अजब रंग नज़र आता है
अज़ीज़ हैदराबादी
उठाईं हिज्र की शब दिल ने आफ़तें क्या क्या
अज़ीज़ हैदराबादी
नारा-ए-तकबीर भी ज़ाहिद निसार-ए-नग़मा है
अज़ीज़ हैदराबादी
बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ
अज़ीज़ हैदराबादी
बहार चाक-ए-गिरेबाँ में ठहर जाती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब
अज़ीज़ हामिद मदनी
वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई
अज़ीज़ हामिद मदनी
ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई
अज़ीज़ हामिद मदनी
सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है
अज़ीज़ हामिद मदनी
सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है
अज़ीज़ हामिद मदनी
नक़्शे उसी के दिल में हैं अब तक खिंचे हुए
अज़ीज़ हामिद मदनी
न फ़ासले कोई निकले न क़ुर्बतें निकलीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर
अज़ीज़ हामिद मदनी
ख़त्म हुई शब-ए-वफ़ा ख़्वाब के सिलसिले गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
जूयान-ए-ताज़ा-कारी-ए-गुफ़्तार कुछ कहो
अज़ीज़ हामिद मदनी
हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना
अज़ीज़ हामिद मदनी
हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को
अज़ीज़ हामिद मदनी
फ़िराक़ से भी गए हम विसाल से भी गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
इक ख़्वाब-ए-आतिशीं का वो महरम सा रह गया
अज़ीज़ हामिद मदनी
ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले
अज़ीज़ हामिद मदनी
आज मुक़ाबला है सख़्त मीर-ए-सिपाह के लिए
अज़ीज़ हामिद मदनी